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लेखनी कहानी -25-Mar-2023 श्रीमद्भगवद्गीता

गीता का परिचय
सबसे पहले तो हमें यह जानना आवश्यक है कि गीता का अध्ययन क्यों आवश्यक है ? 

भगवान ने परम कृपा करके हमें मनुष्य योनि दी है । संसार में चौरासी लाख योनियों में से मनुष्य योनि मिलना ईश्वर की कृपा का ही परिणाम है । मनुष्य योनि मिलना इस बात का प्रमाण है कि ईश्वर हम पर कृपा करना चाहते हैं और हमें वह देना चाहते हैं जिसे पाने के लिए ही हमें मनुष्य योनि मिली है । अर्थात हम परम पिता परमात्मा के अंश हैं और हमारा लक्ष्य परम धाम प्राप्त करना यानि भगवत्धाम प्राप्त करना ही है । गीता हमें वह रास्ता दिखाती है जिससे बैकुंठ धाम की प्राप्ति हो सकती है । इस प्रकार गीता हमारे कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है । गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है अपितु यह मानव कल्याण करने वाली एक अद्भुत पुस्तक है । जीवन को जानना और आनंदमय जीवन जीना गीता ही बतलाती है । 

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा है कि 
" बड़े भाग मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सब ग्रंथहिं गावा ।। 
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा । पाई न जेहिं परलोक संवारा ।। 

अर्थात, बड़े भाग्य से यह मनुष्य योनि मिली है । शास्त्र कहते हैं कि यह योनि देवताओं को भी दुर्लभ है । क्योंकि मनुष्य योनि मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र साधन है । यदि यह योनि व्यर्थ गंवा दी तो फिर बाकी की योनियों में भटकना पड़ेगा । इसलिए इस अवसर का लाभ उठाकर हमें जन्म मरण के दुष्चक्र से बाहर निकल कर भगवत धाम चले जाना चाहिए । गीता हमारा मार्गदर्शन करती है । 

इस संबंध में एक बहुत प्रसिद्ध कथा सुनाता हूं । एक बार एक गरीब लकड़हारा था । वह जंगल से रोज लकड़ियां काट कर लाता । उन्हें जलाकर कोयला बनाता और उन कोयलों को बेच कर अपने परिवार का पेट पालने का काम करता था । उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी । 

एक दिन एक राजा जंगल में शिकार खेलने आया । जंगल में वह रास्ता भटक गया और घूमते घूमते लकड़हारा के सामने आ गया । लकड़हारे ने उसे शीतल जल पिलाया और घर में जो भी खाद्य पदार्थ थे वे लाकर राजा को दे दिए । कहते हैं कि भूख में तो सूखी रोटी भी 56 भोग लगती है । राजा लकड़हारे की सेवा से प्रसन्न हो गया और उसने लकड़हारे को एक चंदन का वन भेंट में दे दिया । 

लकड़हारे ने कभी चंदन की लकड़ी न देखी और न सुनी थी इसलिए वह चंदन के गुणों से वाकिफ नहीं था । वह अपने ज्ञान के अनुसार एक ही बात जानता था कि लकड़ी जलाओ , कोयला बनाओ और बेच दो । बस, वह चंदन की लकड़ियों को भी इसी प्रकार काम में लेता था । 

एक दिन वह राजा पुनः जंगल में आया और उसने देखा कि लकड़हारे की आर्थिक स्थिति वैसी की वैसी ही है । तब राजा ने उससे चंदन के पेड़ों के बारे में पूछा कि वह उनका क्या करता है ? तब लकड़हारे ने बताया कि वह उनकी भी लकड़ियां काटकर उनका कोयला बनाता है और उन कोयलों को बेच देता है । 

साथियों, अज्ञानता के कारण हम लोग भी इस मनुष्य योनि जैसे चंदन वन को बबूल की लकड़ियों की तरह समझ कर इसका कोयला बना रहे हैं और इस मानव जीवन का अपमान कर रहे हैं । भगवत गीता एक ऐसा गुरु है जो हमें बतायेगी कि इस चंदन वन का क्या उपयोग करना है ? अतः हमें स्व कल्याण के लिए गीता पढनी चाहिए । 

गीता पढ़ने से तात्पर्य केवल पढ़ना (reading) नहीं है । गीता पढ़ने से तात्पर्य गीता को अच्छी तरह समझना और उसे हृदयांगम करना है । जब तक गीता में बताई गई बातों को हम हृदयांगम नहीं करेंगे तब तक गीता पढ़ने का कोई मतलब नहीं है । इस संबंध में एक कहानी और सुनाता हूं । 

एक वन में एक ऋषि तपस्या कर रहे थे । उन्होंने एक कुटिया बना रखी थी । धीरे धीरे पशु पक्षी उस कुटिया पर आने लगे । सनातन धर्म की विशेषता है कि वह प्राणी मात्र पर दया करने की शिक्षा देता है । मनुष्य की प्रकृति है प्रेम करना । वह प्राणी मात्र से प्रेम करता है, प्रकृति से प्रेम करता है, इंसान से प्रेम करता है और भगवान से प्रेम करता है । भगवान चूंकि परम पिता परमात्मा हैं और प्रत्येक जीव में उनका अंश है इसलिए हम प्रभु के अंश होने के कारण हम स्वाभाविक रूप से भगवान से प्रेम करते हैं । ऋषि के लिए तो संपूर्ण विश्व ईश्वर है इसलिए वे सबसे प्रेम करते हैं । पशु पक्षी भी ईश्वर के ही अंश हैं । 

एक दिन एक बहेलिया आया । उसने दाना फैलाया और जाल डाल दिया । भोले भाले पक्षी जाल को नहीं जानते थे इसलिए दाने के लोभ में जाल पर बैठ गए । बहेलिया ने जाल समेटा और सब पक्षियों को पकड़ लिया । बहेलिया उन्हें अपने साथ ले गया । ऋषि बहेलिया के इस कृत्य को देख रहे थे । पक्षियों की अज्ञानता पर उन्हें पछतावा हुआ । उन्होंने समस्त पक्षियों को बुलाया और उन्हें पढ़ाया ( समझाया ) 

"बहेलिया आएगा । दाना डालेगा । जाल बिछायेगा । दाना चुगना नहीं है । जाल में फंसना नहीं है" । 

इस तरह सब पक्षियों ने यह पाठ रट लिया । ऋषि पक्षियों को यह पाठ पढ़ाकर बड़े खुश हुए । अगले दिन बहेलिया आया । उसने दाना डाला , जाल फैलाया । पक्षी पाठ पढ़ते हुए आए 
"बहेलिया आएगा। दाना डालेगा। जाल बिछायेगा । दाना चुगना नहीं है । जाल में फंसना नहीं है" 
उसके बाद सभी पक्षी दाने पर टूट पड़े और जाल में फंस गए । पक्षियों ने पाठ तो पढ़ा था पर वे उसे समझ नहीं सके । 

तो आइए, आज से हम भी अपने कल्याण के लिए गीता पढ़ना प्रारम्भ करते हैं । उसे जानने समझने का प्रयास करते हैं । इस श्रंखला में हम रोज एक श्लोक का भावार्थ समझने का प्रयास करेंगे । 

बोलो वृन्दावन बिहारी लाल की जय । 
बोलो राधारानी की जय । 
बोलो श्रीमद्भागवत गीता की जय । 
बोलो सनातन धर्म की जय ।
बोलो सभी भक्तों की जय । 

श्री हरि 
25.3.20230

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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

27-Mar-2023 09:57 AM

बांके बिहारी की जय।🙏🙏

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👌👌👌👌

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प्रिशा

26-Mar-2023 10:48 AM

👌👌👌🙏

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